हमने फूलों को उगलते जहर देखा है


होश में आये तबसे बस सफर देखा है
मेरी आवारगी ने कब मेरा घर देखा है

सापों का फ़न  लुट लिया सियासत ने
हमने फूलों को  उगलते जहर देखा है

जिसने दुनिया की कमीनगी नही देखी
उस बच्चे को मुस्कुराते हर सहर देखा है 

सुब्ह का उजास ना शाम सुरमई देखी
मेरी आँखों ने रिज्क का दोपहर देखा है

टूट शाखा से दुनिया खत्म नही होती
पत्तों को भी उगाते नया शज़र देखा है

इंकलाब का मतलब-ओ-असर वो जाने
जिसने भूख से सुलगता मंजर देखा है

हमसे जिरह करते वो नही थकते ‘नादां’
जिसने सर की छाँव लुटते अम्बर देखा है 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वजह -ए-दर्द-ए-जिंदगी

गज़ल -- बदगुमानी में ना कहीं बदजुबान हो जाए

उनसे ना करो यूँ ईमान की बातें