वो तितली चाँद जुगनू गज़लें ये किताबें
jaybastriya - एक सुबह उन आँखों के शबनमी बूंदों को देखा है इन लम्हों में मैंने आसमां को समेटा है दूर तक पीछा करता वो अधुरा चाँद है उसकी चांदनी भी इक भरोसे ने लुटा है मै दरिया हूँ बस समन्दर मेरी मंजिल पर हसींन मोड़ ने हर मोड़ पर रोका है कागज पर लिख इश्क खूब मिटा दिया इश्क ने मुझे बस इतना दिया धोखा है गुजरा क्या चाँद मेरे शहर से लुट गया इस बस्ती ने किया हर इक से धोखा है वो तितली चाँद जुगनू गज़लें ये किताबें दुनिया में मुझको बस इतने ने रोका है मुख्तसर सी बात है सवाल-ए-हक़ 'नादाँ' इस मुख़्तसर सी जिद में खुद को झोंका है