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अज़ब सियासी फितरत है हुश्न यार की ...

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दोस्तों,  एक गज़लसा... ------------------------------------------------------------------ दिल-ए-बेकरार से वो ये करार कर गये वादे वफा के कुछ युँ ही हजार कर गये खिलौनों का शौक उम्र का कायल नही खेल मेरे दिल से तजुर्बे संवार कर गये अज़ब सियासी फितरत है हुश्न यार की जुल्फों के साये लिया फिर वार कर गये लाइलाज के इलाज़ से युँ बाज़ीगरी हुई नब्ज में उँगलियाँ रखी बीमार कर गये दर्द के हम ही एक खरीददारे बाज़ार थे बेमोल ही वे तिज़ारत-ए-बाज़ार कर गये काँटों से खेलते गुजरी बेदाग ये जिन्दगी एक फुल के खरोंच मुझे लाचार कर गये ज़माने के मुकाबिल नाकाबिल हुए'नादाँ' वो गये क्या सारे फ़न मेरे बेकार कर गये जयनारायण बस्तरिया 'नादाँ'