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इस दौरे निजाम में दवा क्या और जहर कैसा

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हमारे लिए यूँ भी  ये रात क्या और दोपहर कैसा आवारा फ़कीर है कोइ गाँव क्या और डगर कैसा चिराग़ है पर यह दोस्ती है आँधियों और तूफानों मुफलिस है हमसे सियासत क्या और जर कैसा jaybastriya वफ़ा के एवज में जफ़ा मुकम्मल करते लोग है हुश्न के इस दौर को गाँव क्या और शहर कैसा यह इस्तफाक है या किस्मत की कारसाज़ी है उजड़ना ही है जब  आँगन क्या और घर कैसा मुफलिसों की लडकी या उजड़े मकां फर्क क्या सियासतदां की नियत क्या और नज़र कैसा मुख्तलिफ़ सी बात है मिरे  सितारें वफ़ा करें इस दौरे निजाम में दवा क्या और जहर कैसा नज़र से गिर के अबके उस दामन में रह गया अश्क हूँ मेरी मंजिल क्या और कोइ सफर कैसा कमबख्त नजर है आशिक की अब सबर क्यूँ फिसल ही गई तो रुख्सार क्या और कमर कैसा

आदमी और कविता

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वो jaybastriya आम आदमी था कविता लिखता था कविता सुनता था, पढ़ता था कविता ओढ़ता बिछाता था एक दिन वह काठ का हो गया जिस दिन उसे पूरी तरह पता चला ये दुनिया अंधी है बहरी है बिना हाँथ पैर वाली दो मुह वाली बेहिसाब सपोले पैदा करती अंधा सांप है ......