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मार्च, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खुदा का पता क्या पूछ लिया बड़े बेईज्ज़त निकले मैखाने से

हम खींचे है कमान जमाने से वो  मुब्तिला है आजमाने में  तमाशाई में हमारा मुकाबिल कौन आग लगा मशगुल है आशियाने में  एक बार आकर यूँ ठहर जाओ क्या रख्खा है यूँ आने-जाने में  गर्मिये इश्क में ये सिलसिला रहे तू रूठता रहे हर बार मनाने से  इश्क में दस्तूरे ज़फा मुक्कमल है क्या होगा मेरे एक निभाने से  खुदा का पता क्या पूछ लिया बड़े बेईज्ज़त निकले मैखाने से  अपनी पे हम है ये दुनिया क्या फर्क क्या इसके माने न माने से  सवाल बवाल है फकीरी में ‘नादां’ सियासतदां लगेंगे तुझे मिटाने में

लुट चुके जो उनकी की शरारत और सियासत में

कोई बताए क्या कसर है  मेरे इश्क-ओ-इबादत में फर्क करना मुश्किल है उसके इश्क और अदावत में  खुदाया उसका जादू जाने किस-किस सर चढ बोलेगा   कासिद भी उतर आया   उस शोख की वकालत में उसकी मासूमियत के सदके जो मिला पैरोकार बना बेसबब ये शहर ले जाना चाहे है   मुझे अदालत में  कोई मुखातिब हो उनसे कोई तो जिरह करके देखो लुट चुके जो उनकी की शरारत और सियासत में  अपने दिल ही में रख ज़रा अपना ही हाँथ सुंघिए बू-ए-खून-ए-तमन्ना आती है आपके हर इनायत में  बेशाख्ता ये आँखें रुखसार और लब छू डाले हमने अब कौन माने तुमने शह दी मुझे हर हिमाकत में उसके उसकावे में इश्क-ओ-गम का दावा कर दिया किस दम कहे हम ‘नादाँ’ तो लुट गए शराफत में

दिल तो है दिल........

दिल तो है दिल......... दिल लगा के बेदिली का मज़ा कुछ और है इस इश्क  में  बेकली का मज़ा कुछ और है वो ना-ना करते  रहे  मैंने  लब  चूम लिया इश्क में हुक्म-उदुली का मज़ा कुछ और है

अगज़ल- मेरा बस्तर

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Bastar tribe  सहमा-सहमा सा मेरा शहर है जंगल भी खून से तरबतर है चिड़िया गूंगी बहारे बे नजर है   क्या यही मेरा हसींन बस्तर है सूरज भी जब सहसा खामोश है धुवां-धुवां सा ये सारा मंजर है मुद्दा क्या है हुक्मराँ सब जाने मजलूमों के हिस्से बस कहर है कौन रखता है सोच में बारूद कौन देता जलजलों को खबर है किस किस ने किरदार निभाये किस-किस ने खोपा खंजर है यहाँ के नमक का किस पे असर है ये जमीन जानती इसे सब खबर है अजब उसूलों के किताबात है जो उगाता वो भूख के नजर है   इन बदनियतों के सब बे-असर है साहब है पैसा है ना कोइ कसर है अगर है मगर है सबकुछ जबर है लाशे बनाती सियासत की डगर है इतने सवालात अब क्यूँकर ‘नादाँ’ मेरा बस्तर भी क्या अब बस्तर है

मेरी बेकली पे कुछ सवालात करो

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इश्क की पाकीज़गी यूँ दो बयाँ नही   हुश्न के बेपर्दगी पे ज़रा बात करो  ये किस्सा मुख़्तसर हो जाये कभी अभी तुम भी बेखौफ़ मुलाक़ात करो  नफरत करना मेरी फितरत है नही तुम चाहो तो सैकडो अदावात करो  आखों के फ़ितने को जवां होने दो मेरी बेकली पे कुछ सवालात करो तुम मिरे मरासिम हो या ना-शनास इस तआल्लुक का कुछ हिसाबात करो  इस हदूद आशिकी की कसक ‘नादाँ’ तोड़ने उसके शह को कोइ मात करो 

गजल - हर दर्द का कुछ बेदर्दी से मज़ा लेना

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तुझसे रूठना यूँ खुद को सज़ा देना pakizah   मेरे मरासिम का हिसाब लगा लेना  शाख से टूटे पत्ते का अंजाम क्या मेरे बिखरने का अंदाज लगा लेना  तेरे मेरे इस वास्ते को क्या नाम दें मेरे वास्ते रिश्ते को बेनाम बता देना तुझे रुसवाई का सिला लेना क्यूँकर मुझ पे इलज़ाम बे-हिसाब लगा लेना    तेरे जुस्तजू ने मुझे भी सिखा दिया हर दर्द का कुछ बेदर्दी से मज़ा लेना  राहे इश्क में फना लाजमी है ‘नादाँ’ जिंदगी कोइ नया ख्वाब सज़ा लेना