दिल्ली अनन्त तिमिर है बार बार लगातार यह भुमि उंगली उठाकर कहती है हत्यारा उस ओर गया है उसकी उंगली दिल्ली के तरफ उठी हुई है सदियों से सदियों के पुर्व से, सदियों तक इस दुनिया मे पश्चिम , उत्तर पश्चिम से हत्यारे आते रहे है। बर्बर हत्या लुट साम्राज्य धर्मो का रौदं, संस्कृतियो को रौद धर्म ध्वजा फहराते हुये व्यापार के पार तलवारों के नोक पर सत्ता सजाते रहे दिल्ली हर बार असफल हुई रोकने में , प्रतिकार करनें में कराह , चीख , वि लाप , संताप , मौन, रुदन दिल्ली को सुनाई नही देते क्रोध , घृणा , क्षोभ , छटपटाहट निर्मम ढगं से नकारती है, यह दिल्ली यह दिल्ली आमंत्रित करती है बर्बर हत्या लुट के साम्राज्य को व्यापक क्रुरता को इतिहास से अब तक व्यापक त्रासदियों को युद्ध दिल्ली के लिए एक प्रणय है हार अर्पित करने वाला प्रणय हार अर्पित करने वाला प्रणय लाल पत्थरों का किला इतना लाल क्युं है ? सदियों से सदियों तक नैतिकता की हत्या और राष्ट्रधर्म के खुन का रंग संग को सुर्ख करता रहा इन पत्थरों को वहीं पर सत्ता, संसद और सडान्ध प