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ग़ज़ल - अकेले जीना, तेरी आखें से सिखाया ना गया

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हमसे हो ना सका  तुमसे निभाया ना गया दौर-ए-इश्क को अंजाम पर लाया ना गया फलक और जर्रे का ताल्लुक   ये दौरे-ए-जहॉ तुम हुस्न हो हम इश्क ये भुलाया ना गया ताल्लुक रस्म के मानिन्द, चलते कब तक हमसे हो ना सका   तुमसे निभाया ना गया इस बात की तकलीम अब मुमकिन कैसे आग तुमसे लगाया ना हमसे बुझाया गया तेरी जुल्फों से दुर मेरी ये दुनिया कैसी   यूँ जीना तेरी आखें से सिखाया ना गया   तर्के-ताल्लुक इंतजार   बेकरारी अब के 'नादां'   हमसे आया ना गया उनसे बुलाया ना गया